कुछ सवाल - कुछ जवाब
आखों में भी सावन है , बहारो में भी है सावन .
मन भादव का रूप , तन पतझड़ हो गया .
ये कैसी ऋतुएँ है, भीष्म के बाण सी लगे .
तृष्णा कैसी मन की , बूझे तब भी धुँआ निकले .
रात भर का अँधेरा , सुबह उजाला हो जाए .
द्वार बंद सफ़लता का , खुलेगा वो है विश्वास .
चाँद , सूरज , तारें , आँखों में भी है बसे .
बदल का रूप है मन , चाहे कही भी उड़ जाए .
परमात्मा बसा मन में , पर मन ना ये बात मने .
अधूरे विश्वास का , अँधेरा नज़र आए .
द्वार -द्वार भटके नैना , पलट कर मन में ही झाके .
सुन - सुन कर हमने, बंधा अविश्वास का कच्चा धागा .
टूट -टूट जाए वो , पक्का बांधने पर भी .
खुल - खुल जाए वो , कच्ची डोर के कारण .
पहरा दे रहा है ,किस्मत का लेखा - जोखा .
अच्छा कर्म और क्या ?बुरा कर्म और क्या ?
सुख दुःख का ये ,रास्ता है जीवन का .
इक मोड़ सीधा है ,तो दूजा मोड़ टेड़ा - मेढ़ा.
जीवन अनमोल ये ,आशाओं का पर्वत भी है .
कुछ काटों से है भरा ,कुछ फूलों से भी लड़ा .
धुप छाव का ये ,कल का समन्दर है .
कभी अतीत में झाकते है ,तो कभी भविष्य को सुख मय देखते है.
वर्त्तमान से सामना कर ,लड़ते - झगड़ते आगे बढ़ रहे है .
वर्त्तमान को अतीत व भविष्य को वर्त्तमान बनाने में लगे है .
प्रतियोगिता का समय सभी के करीब बेठा है ,
रोज सफलता - असफलता का द्वार खटखटाते नज़र आते है सभी ,
सभी में कही न कही हम भी इस दोर से गुजर रहे है ,
विचार सभी का एक नहीं मगर राह सभी कि एक है ----
सफलता कि |
कृत -------------कविता पाटील ......