शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

kuch saval kuchh javab

कुछ सवाल - कुछ जवाब 


आखों में भी सावन है , बहारो में भी है सावन .

मन भादव का रूप , तन पतझड़ हो गया .

ये कैसी ऋतुएँ है, भीष्म के बाण सी लगे .

तृष्णा कैसी मन की , बूझे तब भी धुँआ निकले .



रात भर का अँधेरा , सुबह उजाला हो जाए .

द्वार बंद सफ़लता का , खुलेगा वो है विश्वास .

चाँद , सूरज , तारें , आँखों में भी है बसे .

बदल का रूप है मन , चाहे कही भी उड़ जाए .



परमात्मा बसा मन में , पर मन ना ये बात मने .

अधूरे विश्वास का , अँधेरा नज़र आए .

द्वार -द्वार भटके नैना , पलट कर मन में ही झाके .

सुन - सुन कर हमने,  बंधा अविश्वास का कच्चा धागा .

टूट -टूट जाए वो , पक्का बांधने  पर भी .

खुल - खुल जाए वो , कच्ची डोर के कारण .



पहरा दे रहा है ,किस्मत का लेखा - जोखा .

अच्छा कर्म और क्या ?बुरा कर्म और क्या ?

सुख दुःख का ये ,रास्ता है जीवन का .

इक मोड़ सीधा है ,तो दूजा मोड़ टेड़ा - मेढ़ा.

जीवन अनमोल ये ,आशाओं का पर्वत भी है .

कुछ काटों से है भरा ,कुछ फूलों से भी लड़ा .

धुप छाव का ये ,कल का समन्दर है .

कभी अतीत में झाकते है ,तो कभी भविष्य को सुख मय देखते है.

वर्त्तमान से सामना कर ,लड़ते - झगड़ते आगे बढ़ रहे है .




वर्त्तमान को अतीत व भविष्य को वर्त्तमान बनाने में लगे है .

प्रतियोगिता का समय सभी के करीब बेठा है ,

रोज सफलता - असफलता का द्वार खटखटाते नज़र आते है सभी ,

सभी में कही न कही हम भी इस दोर से गुजर रहे है ,

विचार सभी का एक नहीं मगर राह सभी कि एक है ----
                                                                         सफलता कि |

कृत -------------कविता पाटील ......